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स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय
भारत सरकार

लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज एवं सुचेता कृपलानी अस्पताल

लेडी हार्डिंग मेडिकल कालेज और श्रीमती सुचेता कृपलानी अस्‍पताल
 
चिकित्‍सा शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज को विशेष रूप से महिला स्‍नातक छात्राओं को प्रशिक्षित करने हेतु भारत का एकमात्र मेडिकल कॉलेज होने का अनूठा गौरव है। इस कॉलेज की स्‍थापना तत्‍कालीन वायसराय की पत्‍नी, पेनहर्स्‍ट की लेडी हार्डिंग द्वारा समकालीन भारत में सह-शैक्षिक कॉलेजों में अपनी बेटियों को शिक्षित करने के प्रति माता-पिता के मन में व्‍यापत रूढ़‍िवादी प्रवृत्तियों को दूर करने के लिए की गई थी। उन्‍होंने अपने सत्प्रयासों से रियासतों और जनता से धन जुटाया। यह संस्‍थान वर्ष 1911-12 में महामहिम महारानी मैरी की भारत यात्रा की स्‍मृति में बनाया गया था। तब इसका नाम क्‍वीन मैरी कॉलेज और अस्‍पताल रखने का निर्णय लिया गया था। 17 मार्च, 1914 को लेडी हार्डिंग द्वारा इसकी आधारशिला रखी गई थी। दुर्भाग्‍यवश, उसी वर्ष के अंत में इस महान और उत्‍साही महिला का देहांत हो गया, जिसने न सिर्फ बड़े उत्‍साह से इसकी शरूआत की थी बल्कि इस संस्‍थान को अस्तित्‍व में लाने के लिए कई प्रयास भी किये थे । क्‍वीन मेरी की इच्‍छानुसार, इसके संस्‍थापक की स्‍मृति को सदा के लिए बनाए रखने के लिए इस कॉलेज तथा अस्‍पताल का नाम लेडी हार्डिंग के नाम पर रखा गया। फरवरी 1916 में लॉर्ड हार्डिंग द्वारा संस्‍थान को औपचारिक रूप से शुरू किया गया। इस कॉलेज ने भारत में महिलाओं के लिए चिकित्‍सा शिक्षा को आगे बढ़ाने का महती कार्य किया है। आज यह तथ्‍य इस बात से सिद्ध होता है कि इस कॉलेज से शिक्षा पाने वाले डाक्‍टरों ने दुनिया भर में ख्‍याति प्राप्‍त की है। वे महत्‍वपूर्ण पदों पर आसीन हैं और अपने-अपने क्षेत्रों में सर्वश्रेष्‍ठ माने जाते हैं जैसे डॉ. सुशील नायर, आई.सी.एम.आर की डॉ ऊषा लुथरा, विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन(डब्‍ल्‍यू.एच.ओ.) की डॉ. सुमेधा खन्‍ना, फॉर्ड फाउंडेशन की डॉ. सरोज पचौरी ।
 
कॉलेज की शुरुआत डॉ. केट प्‍लाट (एमडी) के कुशल नेतृत्‍व में हुई, जो कॉलेज के प्रथम प्रधानाचार्य थे। वर्तमान में डॉ. जी के शर्मा कॉलेज के निदेशक हैं। शुरुआत में, पूरे भारत से प्रतिवर्ष 14-16 छात्रों का दाख़ि‍ला दिया जाता था। वार्षिक दाख़ि‍लों की संख्‍या की समय-समय पर समीक्षा की जाती थी और अंतत: वर्ष 2008 में इसकी मौजूदा दाख़ि‍ला संख्‍या 150 की गई । यह दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय के अधीन एकमात्र मेडिकल कॉलेज है जिसने केंद्रीय शैक्षणिक संस्‍थान (प्रवेश में आरक्षण) अधिनियम, 2006 के कार्यान्‍वयन के पहले चरण के भाग के रूप में ओबीसी उम्‍मीदवारों को दाखिला देकर वर्ष 2008 में अपनी दाख़ि‍ला क्षमता में वृद्धि की। और वर्ष 2011 में, पूर्वोक्‍त अधिनियम के कार्यान्‍वयन कार्यक्रम के तीसरे चरण के पूरा होने तक, एम.बी.बी.एस. में दाख़ि‍ले की क्षमता को बढ़ाकर 200 सीट कर दिया गया। इस वृद्धि के अनुरूप, संस्‍थान के व्‍यापक पुनर्विकास के लिए इसके संकाय, स्‍टाफ, बिस्‍तरों की संख्‍या में वृद्धि, नये भवन तथा अन्‍य बुनयादी अवसंरचना की स्‍थापना पर विचार किया जा रहा है ।
 
शुरुआती दौर में यह कॉलेज एक स्‍वायत्‍त संस्‍था थी जिसका प्रबंधन एक शासी निकाय द्वारा किया जाता था। वर्ष 1953 में, केंद्र सरकार द्वारा गठित एक प्रशासनिक बोर्ड ने औपचारिक रूप से इस संस्‍थान के प्रबंधन का प्रभार संभाला । फरवरी 1978 में, संसद के एक अधिनियम के तहत, इसका प्रबंधन स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण मंत्रालय द्वारा अपने हाथों में ले लिया गया। कॉलेज ने अपनी अद्वितीय विशेषता को बनाए रखते हुए एक लम्‍बा रास्‍ता तय किया है और यह अभी भी समय के साथ आगे बढ़ते हुए अपने क्रियाकलापों के सभी क्षेत्रों में अपने आप को गतिशीलता से अपग्रेड कर रहा है।
 

 

इसकी स्‍थापना के बाद, 6125 स्‍नातक तथा 2564 स्‍नाकोत्‍तर छात्रों ने इस संस्‍थान से विभिन्‍न चिकित्‍सा और शल्‍यचिकित्‍सा विशेषज्ञताओं में अपनी शिक्षा पूरी की है। इसके छात्रों और संकाय ने देश के सर्वश्रेष्‍ठ को चुनौती देते हुए संस्‍थान की अकादमिक उत्‍कृष्‍ठता, अत्‍याधुनिक स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल व्‍यवस्‍था तथा अनुसंधान की उच्‍च गुणवत्‍ता को बनाए रखने के लिए लगातार संघर्ष किया है। चिकित्‍सा छात्रों के शिक्षण एवं प्रशिक्षण हेतु कॉलेज में दो पूर्ण विकसित अस्‍पताल- श्रीमती सुचेता कृपलानी अस्‍पताल तथा कलावती सरन बाल अस्पताल हैं, जिसमें क्रमश: 877 और 350 बेड की क्षमता है। अस्‍पताल के सभी विभाग दिल्‍ली और आस-पास के क्षेत्रों के लोगों को तृतीयक स्‍तर की स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल सेवाएं प्रदान करने के लिए आधुनिक सुविधाओं से लैस हैं। वर्ष 1991 से यह अस्‍पताल पुरुष मरीजों को भी देखभाल सुविधाएं प्रदान कर रहा है।